सन्तान सुख का योग विशेषकर पति की कुण्डली के पंचम भाव से देखा जाता है जिसका 70% रोल होता है तथा जातिका का इस योग के निर्धारण के लिए 30% रोल माना जाता है l
सन्तान सुख योग के लिए निम्नलिखित बातें जाँची जाती हैं –
- पंचम भाव में कौन सी राशि आती है – पुल्लिंग या स्त्रीलिंग l
- पंचम भाव में कौन से ग्रह पड़े हैं l
- पंचम भाव पर कौन से ग्रहों की दृष्टि का प्रभाव पड़ता है l
- यदि पंचम भाव में दो ग्रह (पुरुष और स्त्री कारक ग्रह) हों तो उनका बल देखा जाता है l
प्रथम सन्तान के लिए हमें पंचम भाव का अध्ययन करना होता है, द्वितीय सन्तान के लिए सप्तम भाव, तृतीय सन्तान के लिए नवम भाव तथा चतुर्थ सन्तान के लिए 11वें भाव का अध्ययन किया जाता है l
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- सन्तान सुख योग के लिए सप्तमाशा – कुण्डली (D-7) का अध्ययन किया जाता है l
- सप्तमाशा कुण्डली में पहली सन्तान के लिए लग्न भाव एवं लग्नेश देखा जाता है l
- दूसरी सन्तान के लिए पंचम भाव तथा पंचमेश देखा जाता है l
- तीसरी सन्तान के लिए सप्तम भाव तथा सप्तम भाव के स्वामी का अध्ययन किया जाता है l
यदि लग्न कुण्डली के पंचम भाव पर मारक ग्रहों का प्रभाव अधिक है तथा पंचम भाव का मालिक कुण्डली के षष्ठम भाव, अष्ठम भाव तथा द्वादश भाव में उदय अवस्था में बैठा है तोह सन्तान न होने का योग बनता है I यदि सन्तान हो जाती है तोह सन्तान को जीवन में बहुत कष्ट होते है I
- यदि किसी जातक की कुण्डली में पंचम भाव में एक से अधिक मारक ग्रह बैठे हैं तोह प्रथम सन्तान की उत्पत्ति में समस्या आती है, ऐसी परिस्थित में गर्भपात की सम्भावना बहुत अधिक बढ़ जाती है I पंचम भाव में बैठे मारक ग्रहों को दान की मदद से शांत करने से गर्भपात जैसी परिस्थितियाँ समाप्त हो जाती हैं I
- मारक ग्रह की नकारात्मक किरणों को शरीर में ना बढ़ने दें उसे दान तथा पाठ – पूजन की मदद से शरीर से कम करते रहें जिस से आपको समस्याएँ ना हों I
- यदि पंचम भाव का मालिक (पंचमेश) नीच राशि में, छठे भाव में, अष्ठम भाव में तथा बारहवें भाव में उदय अवस्था में बैठा है तोह ग्रह अपनी योगकारिता (शुभता) खो देता है और मारक ग्रह बन जाता है ऐसी स्थित में पंचमेश का दान तथा पाठ – पूजन नियमित रूप से अवश्य करें I मारक ग्रह का दान करने से जीवन की 90% समस्याएँ कम हो जाती हैं I
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