ज्योतिष के महत्वपूर्ण सिद्धांत

योग करक ग्रह की परिभाषा :

योग करक ग्रह कुण्डली में अच्छे घर का मालिक होता है l यह ग्रह जहाँ बैठता है, जहाँ देखता है और जहाँ जाता है उन घरों की वृद्धि करता है I

  • एक योग कारक ग्रह भी मारक (शत्रु) बन सकता है I यदि योग कारक ग्रह उदय अवस्था में कुण्डली के 3rd, 6th, 8th & 12th भाव में तथा नीच राशि में बैठा है तोह योगकारक ग्रह अपनी योगकारिता खो देता है और मारक ग्रह (शत्रु ग्रह) बन जाता है , वही योगकारक कहे जाने वाला ग्रह बहुत बुरा फल देने के लिए बाध्य हो जाता है I इसलिए ग्रहों की स्थित देखने के बाद ही योग कारक ग्रह का चयन करें I
  • यदि कुंडली का योगकारक ग्रह उदय अवस्था में 3rd, 6th, 8th, 12th भाव में तथा नीच राशि में बैठा है तोह भूलकर भी रत्न धारण ना करें I नहीं तोह आप बर्बादी की तरफ चल पडेंगे I

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मारक ग्रह की परिभाषा :

मारक ग्रह कुण्डली में बुरे घरों का मालिक होता है I यह ग्रह अशुभ प्रभाव देने वाला होता है I यह ग्रह जहाँ बैठता है, जहाँ देखता है और जहाँ जाता है उन घरों का नुक्सान करता है अर्थात उन घरों पर अशुभ प्रभाव डालता है I

  • मारक ग्रह का रत्न कभी भी धारण नहीं किया जाता है I क्यूंकि मारक ग्रह से पड़ने वाली किरणें आपके शरीर की शत्रु होती हैं जो कि सदैव कष्टकारी होती है I जब भी मारक ग्रह की दशा-अन्तरा (i.e समय चले) चलेगी, आपके लिए समस्याएं लेकर आएगी I
  • मारक ग्रह सिर्फ एक कंडीशन पर अच्छा परिणाम दे सकता है जब ग्रह विपरीत राजयोग की थ्योरी में आ जाये I लेकिन उस कंडीशन में भी उस मारक ग्रह का रत्न धारण नहीं किया जायेगा I विपरीत राजयोग की सम्पूर्ण जानकारी आगे “राजयोग” के topic में दी जाएगी I

सम ग्रह की परिभाषा :

सम ग्रह कुण्डली में अच्छे भावों का मालिक होता है l पर वह लग्नेश (प्रथम भाव का स्वामी) का शत्रु या विरोधी दाल का होता है l कुण्डली में अपनी स्थित के अनुसार सम ग्रह अच्छा या बुरा फल देता है l अगर वह अच्छे भाव में बैठा है तो अच्छा फल देगा और बुरे घरों में बैठा है तो बुरा फल देगा I

  • यदि सम ग्रह अच्छे भाव (1st, 2nd, 4th, 5th, 7th, 9th, 10th, 11th) में बैठा है तोह उस ग्रह का रत्न धारण किया जा सकता है I यदि सम ग्रह कुण्डली के (3rd, 6th, 8th, 12th) भाव में तथा नीच राशि में बैठा है तोह उस ग्रह का रत्न कदापि धारण ना करें I एक गलत रत्न आपके शरीर में कई गुना नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ा देगा जोकि आपको बर्बादी की तरफ ले कर जायेगा I क्यूंकि वह ग्रह गलत भाव में बैठने से अशुभ हो चुका है और उस ग्रह से हमारे शरीर पर नकारात्मक किरणें पड़ेंगी I जोकि हमारे शरीर के लिए हानिकारक हैं I

1. ज्योतिष सिद्धांत (अष्टम से अष्टम का सिद्धांत)

यह सिद्धांत कुण्डली को समझने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्योँकि अक्सर हर जातक को  यह गलतफहमी रहती है की दूसरा और सातवें घर का मालिक हमेशा मारक होता है I लकिन दूसरे और सातवें घरों का मालिक हर लग्न कुण्डली में अलग – अलग तरह की भूमिका निभाते हैं l मेरे पिछले कई सालों के अनुशंधान मे यह पाया गया की अगर इस 8 × 8  सिद्धांत को सही ढंग से समझना है तो हमें एक नियम सदैव याद रखना होगा l वो नियम है – (लग्नेश का शत्रु होना या विरोधी दल का होना)

  • इस बात को सदा ध्यान में  रखना होगा कि जब भी आप दूसरे भाव के स्वामी और सप्तम  भाव के स्वामी का विश्लेषण करें तो इस सिद्धांत को याद रखें l जिससे आप को यह निर्णय करने में आसानी रहेगी कि कहाँ – कहाँ दूसरे और सप्तम भाव का स्वामी कारक और मारक बनता है l

आठवाँ घर मृत्यु स्थान होता है और आठवें घर से द्वादश स्थान सप्तम भाव होता है l सप्तम भाव का स्वामी अगर लग्नेश का शत्रु या विरोधी दल का है तो सप्तमेश मारक बन जाता है l

  • यदि आठवें घर से आठवाँ घर कुण्डली का तीसरा घर हुआ, फिर वहाँ से बारहवां घर दूसरा घर हुआ I यदि दूसरे घर का मालिक (स्वामी), लग्नेश का शत्रु है या विरोधी दल का है तोह दूसरे घर का मालिक मारकेश (मारक और शत्रु) बनता है I

सरल भाषा में समझें:

  • यदि दूसरे घर/भाव का मालिक लग्नेश का शत्रु या विरोधी दल का है तोह दूसरे घर का मालिक (दूसरे घर में लिखी राशि का स्वामी) शत्रु (मारक) ग्रह बनता है I

For Example:

  • मेष लग्न की कुण्डली में दूसरे घर का मालिक “शुक्र” लग्नेश (मंगल) का शत्रु है इसलिए मेष लग्न की कुण्डली में शुक्र देवता एक शत्रु ग्रह (मारक ग्रह) बनते हैं I शुक्र की दशा-अन्तरा सदैव कष्टकारी होगी I
(मेष लग्न में शुक्र देव मारक ग्रह हैं I )
  • यदि दूसरे घर का मालिक लग्नेश का मित्र है तोह दूसरे घर का मालिक एक योग कारक ग्रह बनता है I
(कन्या लग्न में शुक्र देवता (द्वितीय भाव का स्वामी) योग कारक बनते हैं )

2. डिस्पोजिटर थ्योरी (Dispositor Theory) :

कई बार यह देखने में आया है कि कुण्डली का कारक ग्रह एक अच्छे भाव में पड़े होने के बावजूद भी बहुत बढ़िया फल नहीं दे पता है और गणना करने वाले को यह समझ नहीं आता कि कारक ग्रह अच्छा फल क्योँ नहीं दे पा रहा है l यदि डिस्पोजिटर थ्योरी के दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह बात समझ आती है की अच्छा ग्रह जिस भाव मे अच्छा फल नहीं दे पा रहा है उस का मालिक कुण्डली में कही अशुभ या बलहीन है जिस कारण वह ग्रह अच्छे फल नहीं दे पा रहा है l

For Example: इस कुण्डली में बृहस्पति हंस नामक पंचमहापुरुष योग (राजयोग) बनाता है l
  • परन्तु यदि इस कुण्डली में बृहस्पति जो की चन्द्रमा के घर में उच्च का होकर पंच महापुरुष योग बनाता है, अगर चन्द्रमा ही कुण्डली में किसी प्रकार से बलहीन (0 or 29-30 degree) या अशुभ हो जाए तो वह हंस नामक पंचमहापुरुष योग के फल देने मे सक्षम नहीं होगा या पंच महापुरुष योग के फल में बहुत बड़ी कमी ले आता है l

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3. उपाच्य थ्योरी :

तीसरे, छठे तथा ग्यारहवें भाव कुण्डली में उपाच्य स्थान माने जाते हैं जोकि अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी हो सकते हैं l

  • इन भावों के स्वामी यदि उपाच्य थ्योरी में आ जाए तो वह अपनी दशा – अन्तर्दशा में शुभ फल देने में सक्षम हो जाते हैं l परन्तु यह थ्योरी तब लागू होती है जब कुण्डली का लग्नेश बली (Strong 13-18 degree) और शुभ हो l
  • तीसरे , छठे तथा ग्यारहवें भाव के स्वामी यदि स्वः राशि में पड़े हो तो वे अपने भाव से सम्बंधित सदैव अच्छे फल देंगे परन्तु लग्नेश का बली और शुभ होना अनिवार्य है l
  • For Example: नीचे दिए गए मेष लग्न के चार्ट में यदि मंगल देवता 13-18 डिग्री के हों तथा शुभ भावों में बैठे हों तोह बुध (3rd & 6th भावों में) और शनि देव (11th भाव में) उपाच्या थ्योरी के अनुसार अच्छा फल देने में बाध्य हो जाते हैं I
  • For Example 2: नीचे दिए गए मीन लग्न के चार्ट में यदि बृहस्पति देवता 13-18 डिग्री के हों तथा शुभ भावों में बैठे हों तोह शुक्र देवता (3rd भाव में), सूर्य देवता (6th भाव में) और शनि देव (11th भाव में) उपाच्या थ्योरी के अनुसार अच्छा फल देने में बाध्य हो जाते हैं I

3. Posited, Aspected And Conjuncted Theory (PAC Theory) : (स्थान ,दृष्टि और युति की थ्योरी)

स्थान :-

  • हर ग्रह का विवेचन करने से पहले यह देखना अति अनिवार्य है कि वह ग्रह कुण्डली के किस भाव या स्थान पर पड़ा है जिससे उसके फल का निर्णय किया जाता है l यदि ग्रह एक अच्छे भाव में विराजमान है तो अपनी दशा – अन्तर्दशा में अपनी क्षमतानुसार अच्छा फल देगा और यदि ग्रह एक बुरे भाव में पड़ा है तो अपनी दशा – अन्तर्दशा में सदैव बुरा फल ही देगा l

दृष्टि :-

  • यदि ग्रह योग कारक होकर अच्छे भाव में पड़ा है तो वह जिस – जिस भाव पर दृष्टि डालेगा, उस भाव से सम्बंधित भी अच्छा फल देगा l परन्तु यदि कोई ग्रह अशुभ भाव में पड़ा है तो उसकी दृष्टियां भी अशुभ फलदायक होंगी और वह जिस भाव पर दृष्टि डालेगा उस भाव को भी ख़राब करेगा l

युति :-

  • यदि किसी योग कारक ग्रह की युति अच्छे भाव में किसी दूसरे योग कारक ग्रह के साथ बन जाती है तो उस योग कारक ग्रह का बल बढ़ जाता है l परन्तु यदि योग कारक ग्रह की युति किसी मारक ग्रह के साथ हो जाए तो उसकी योग कारकता में बहुत बड़ी कमी आ जाती है l
  • यदि दो मारक ग्रहों की युति हो जाए तो दोनों का मारकेत्व बढ़ जाता है l
  • यदि योग कारक ग्रह की युति मारक ग्रह के साथ हो जाए तथा योग कारक ग्रह की क्षमता मारक ग्रह से जयादा हो त वह मारक ग्रह के मारकेत्व में कमी ला देगा l
  • किसी भी कुण्डली का विश्लेषण करते समय इस थ्योरी को स्मरण रखना अति आवश्यक है l जीवन की हर घटना का विवेचन इस थ्योरी के अनुसार ही होता है l

4. वर्गोतम नियम :

  • वर्गोतम नियम कुण्डली में ग्रहों का बलाबल का निर्णय करने मे बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं l अगर ग्रह कुण्डली में वर्गोतम हो जाए तो उसके बलाबल में वृद्धि हो जाती है l लकिन ग्रह का बलाबल अच्छा है या बुरा इस बात पर निर्भर करता है की ग्रह कुण्डली में योग कारक है या मारक है l
  • अगर ग्रह कुण्डली का योगकारक है और वह वर्गोतम हो जाए तो उसके फल मे वृद्धि हो जाती है
  • यदि ग्रह कुण्डली का मारक ग्रह है और वह वर्गोतम हो जाए तो उसके मारकेत्व में वृद्धि हो जाती है l

4.1 वर्गोतम की परिभाषा

  • जो ग्रह जन्मकुण्डली में जिस राशि में पड़ा हो अगर वही ग्रह नवमांश कुण्डली में भी उसी राशि में स्थित हो फिर चाहे भाव कोई भी हो वह ग्रह वर्गोतम हो जाता है l इस बात का कुण्डली विवेचन करते समय सर्वदा ध्यान रखना चाहिए l
  • For Example:
1. जन्म लग्न कुण्डली
2. नवमांश कुण्डली
  • उदाहरण में यह दर्शाया गया है कि जन्म कुण्डली में यदि बृहस्पति ग्रह उच्च का है और वह नवमांश में भी उच्च का है तो वह वर्गोतम माना जाता है l इससे बृहस्पति ग्रह के फल में वृद्धि होती है l

5. बृहस्पति और शनि देव (कारको नाशो भवः और कारको वृद्धि भवः) के महत्वपूर्ण तथ्य :

बृहस्पति देव :

परिभाषा :  बृहस्पति देव के बारे में शास्त्रों में कहा गया है की वे जहाँ बैठते हैं उस घर का नाश  करते हैं तथा जिस घर पर दृष्टि डालते हैं उस घर की वृद्धि करते हैं l

Explanation:   चाहे यह बात शास्त्र सम्वत है परन्तु यह पूर्णतः सत्य नही है क्योँकि यह बात बृहस्पति के कुण्डली में योग कारक होने  या मारक ग्रह होने पर निर्भर करती है l यदि बृहस्पति देव हर घर मे बैठकर उसका नाश करते तो बहुत सारे राजयोग बन ही नहीं सकते जबकि बृहस्पति देवता  हमारे ब्रह्माण्ड के सभी ग्रहों में से सर्वेश्रेष्ठ माने जाते हैं l इंसान अपने जीवन में जो भी कामना करता है, वह सारी चीज़े बृहस्पति देवता के कारकेत्व में ही आती हैं l

बृहस्पति  के कारकेत्व :-

1.  धन           2.  मान – यश       3.  परिवार    4.   ज्ञान    5.    संतान 6.   बड़ा भाई     7.  गुरु         8.  भाग्य       9.    धर्म को मानना

  • उपरोक्त लिखी सभी वस्तुएं जो हर सामान्य व्यक्ति चाहता है, वह बृहस्पति देव के पास ही है l इसलिए इन्हे गुरु देव भी कहा जाता है जिनके आगे सभी देवता भी नमन करते हैं l इसलिए जिस भाव में बृहस्पति देव बैठेंगे उस भाव का नाश कैसे कर सकते हैं ?
  • यदि यह बात सत्य होती कि जिस भाव में बृहस्पति देव बैठते हैं उस भाव का नाश करते हैं तो जिस कुण्डली के लग्न -भाव  में बृहस्पति विराजमान हो तो क्या वह जातक जन्म नहीं लेता ?
  • दूसरे भाव में हो तो क्या जातक के परिवार का नाश होता है ? जबकि सत्य बिल्कुल इससे विपरीत है l अगर लग्न में योग – कारक होकर बृहस्पति बैठा हो तो वह जातक को ज्ञानवान, सूझवान और हर तरफ से समर्थ बनाने में सक्षम होता है l अगर बृहस्पति पंचम भाव में हो तो वह पुत्र -कारक ग्रह माना जाता हैl

शनि देव :

परिभाषा :- शनिदेव के बारे में शास्त्रों में यह कहा जाता है की वे जिस घर में बैठते हैं उस घर की वृद्धि कर देते हैं और जिस घर पर दृस्टि डालते हैं उस घर का नाश करते हैं l शनिदेव की परिभाषा बृहस्पति  देव से बिल्कुल विपरीत मानी जाती है l

  • चाहे यह बात शास्त्र सम्वत है परन्तु यह पूर्णतः सत्य नहीं है l क्योँकि यह कुण्डली में शनिदेव के योग – कारक ग्रह या मारक ग्रह होने पर निर्भर करता है l
  • शनिदेव यदि कुण्डली में मारक ग्रह हो तो जिस घर में विराजमान होंगे, उस घर की हानि में वृद्धि करेंगे l परन्तु यदि शनि देव कुण्डली के कारक ग्रह होंगें तभी घर के लिए सकारात्मक वृद्धि करेंगे l

About the Author & Astrologer 

The author, Somvir Singh has pursued his Mechanical Engineering from HBTU Kanpur in 2012. Later, he joined IIT Roorkee for Post graduation, and after an year he left the institute due to financial problem and joined PSU HEC Ltd, Ranchi in January 2014. Thereafter, he faced some unforeseen problem in life and consulted to a few astrologers but none were to his satisfaction nor the problem went away. And this is when his journey begun in the field of astrology. After doing research in astrology for more than a couple of years, he has put his learnings and findings in 217 pages as “Self Made Destiny”. In this book, he has covered all articles scientifically.

The book is specifically written for anyone who likes to read day-to-day astrology predictions, want to know about yourself and eventually learn astrology.

The book is dedicated to his wife who had been a constant support in this journey.

Best Astrologer Award in Global Business Award 2021, New Delhi from Miss Prachi Desai
Mr. Somvir Singh (B.Tech – HBTU Kanpur, M.Tech – IIT Roorkee, Expertise in Vedic Astrology)
Author :  Self Made Destiny (Astrology Book), ISBN: 978-93-5427-087-1

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12 thoughts on “ज्योतिष के महत्वपूर्ण सिद्धांत”

  1. Nikhil Kumar

    Very Sound Knowledge. Sir hamko nhi pata tha ki astrology me bhee es tarah ke laws hain… ! Kya ye sab laws local pandit ji ko pata hote honge…

  2. Dr. Saurabh Singh

    Very good Somvir Ji, I like your thoughts and you’r sharing your knowledge with us so that everybody can know about kundali without Astrologer. Very good initiative.

    Regards
    Dr. Saurabh Singh
    New Delhi

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