बहुत सारे विद्वान केवल गुण मिलान को ही कुण्डली मिलान मान लेते हैं I जबकि गुण मिलान केवल 25% ही होता है I आम आदमी बाकि के 75% की विवेंचना करना जरुरी नहीं समझता जिसके कारण कुण्डली मिलान में अच्छे गुण मिलने के बाद भी पति-पत्नी को अलग होते देखा गया है या उनके वैवाहिक सम्बन्धों में हमेशा मन – मुटाव रहता है I
- सही कुण्डली मिलान में निम्नलिखित चार बातों पर ध्यान देना अति अनिवार्य है-
Learn Astrology in just 7 – 10 days :
गुण मिलान :
- कुण्डली मिलान में कुल 36 गुण होते हैं I 18 से लेकर 20 गुणों तक मिलने अति अनिवार्य हैं I इनसे कम गुण मिलने पर कुण्डली मिलान को आगे नहीं बढ़ाना चाहिएI
दाम्पत्य सुख :
- जन्म लग्न कुण्डली में सातवा भाव और सातवें भाव का स्वामी यह दर्शाता है कि जातक के जीवन में दाम्पत्य सुख कैसा रहेगा I अगर सातवें भाव में मारक ग्रह स्थित है या सातवें भाव का स्वामी नीच, अस्त या 6, 8, 12 भाव में है तो जातक के दाम्पत्य सुख में परेशानी आती है I
- अगर जन्म लग्न कुण्डली में सातवें भाव के स्वामी और सातवें भाव की स्थित ख़राब है तो हमें नवमांश कुण्डली को देखते समय लग्न भाव और लग्न भाव के स्वामी की स्थित साथ ही साथ सप्तम भाव और उसके स्वामी की स्थित पर ध्यान देना अनिवार्य है I
सन्तान सुख :
- संतान सुख के लिए जन्म लग्न कुण्डली के पंचम भाव और पंचम भाव के स्वामी की स्थित देखी जाती है I पंचम भाव पर मारक ग्रहों का प्रभाव और पंचम भाव का स्वामी 6, 8, 12 भाव में, नीच, अस्त या बलहीन तो नहीं इस पर ध्यान देना अति अनिवार्य हैI
- अगर जन्म लग्न कुण्डली में पाँचवें भाव की स्थित और पाँचवें भाव के स्वामी की स्थित ख़राब है तो हमें सप्तमाशा कुण्डली पर ध्यान देना चाहिए l सप्तमाशा कुण्डली में लग्न भाव और लग्नेश की स्थित देखी जाती है l पाँचवें भाव और पाँचवें भाव का स्वामी की स्थित पर ध्यान दिया जाता है l
शिक्षा :
- दोनों जातकों की शिक्षा का स्तर इतना जरूर होना चाहिए कि वह एक दूसरे के संग रहते हुए एक दूसरे को समझ कर अच्छा दाम्पत्य जीवन व्यतीत कर सकें l अगर जातक ज्यादा पढ़ा लिखा है और जातिका कम पढ़ी लिखी है तो आपसी रिश्तों में मन मुटाव रहता है l इसके विपरीत यदि जातिका ज्यादा पढ़ी लिखी है तो भी स्थित तनाव पूर्ण बनी रहती है l
अष्टकूट मिलान :
- कुण्डली मिलान की प्रक्रिया में अष्टकूट मिलान का बड़ा महत्त्व है l अष्टकूट मिलान में चन्द्रमा के नक्षत्र और चन्द्रमा राशि का बहुत महत्त्व होता है क्यूंकि अष्टकूटों का निर्धारण चंद्र राशि और चन्द्रमा के नक्षत्र से होता है l अष्टकूट को 8 हिस्सों में बांटा गया है l उन सभी हिस्सों के समावेंश से ही 36 गुण बनते हैं l सारे हिस्सों का विवरण इस प्रकार है –
- वर्ण = 1
- वश्य = 2
- तारा = 3
- योनि = 4
- ग्रहमैत्री = 5
- गणमैत्री = 6
- भकुट = 7
- नाड़ी = 8
टोटलगुण = 1+2+3+4+5+6+7+8 = 36
वर्ण, वश्य, तारा, योनि और गणमैत्री :
- ये सभी पाँचों हिस्से चन्द्रमा के नक्षत्र और चन्द्रमा की राशि से निर्धारित किये जाते हैं l
- कुण्डली मिलान में ग्रहमैत्री, भकुट और नाड़ी मिलान की महत्वा ज्यादा है l
एक सुखमय दाम्पत्य जीवन के लिए ग्रहमैत्री, भकुट और नाड़ी इन तीनों का मिलना अति अनिवार्य है I
ग्रहमैत्री :
- चंद्र राशि ही ग्रहमैत्री का निर्णय करती है l क्यूंकि चन्द्रमा मन का करक है और राशि चन्द्रमा से ही देखी जाती है l उसी से आपसी मन और विचार मिलान देखे जाते हैं l दोनों ही जातकों की राशियों के स्वामी अगर परस्पर मित्र हैं तो वह ग्रहमैत्री मान्य होती है और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए अनिवार्य है l अगर दोनों की राशियों के स्वामी परस्पर शत्रु हैं तो यह ग्रहमैत्री नहीं मानी जाती है l
- ग्रहमैत्री नहीं होने पर विवाह के पश्चात आपसी विचारों में मतभेद रहता है जोकि दोनों के अलग होने का कारण बन जाता है l
- कुछ ग्रहमैत्री ऐसी होती है जो सर्वदा वर्जित मानी जाती हैं चाहे कुण्डली में ग्रहों की स्थित कितनी भी अच्छी हो लेकिन ग्रहमैत्री नहीं है तो कुण्डली मिलान अच्छा नहीं माना जाता है l
वर्जित ग्रहमैत्री
1. सूर्य – शनि
2. सूर्य – शुक्र
3. चंद्र – शनि
4. चंद्र – बुध
5. मंगल – बुध
6. मंगल – शनि
नोट:- यदि कुण्डली में चन्द्रमा का बलाबल कमजोर हो या चन्द्रमा अस्त अवस्था में हो तो परस्पर शत्रु राशियों का मिलान भी किसी विद्वान् की सलाह लेकर संभव किया जा सकता है l
भकुट:
- भकुट की परिभाषा में हमें यह समझना अति अनिवार्य है कि भकुट कहा किसे जाता है l भकुट का अर्थ है कि पति – पत्नी एक दूसरे के लिए कितने भाग्यशाली हैं l इस बात का निर्णय भकुट से होता है l भकुट के प्रकार :-
1. द्वि – द्वादश – अशुभ व शुभ हो सकते हैं l
2. तीन – ग्यारह – हमेशा शुभ
3. चार – दस – हमेशा शुभ
4. नव – पंचक – हमेशा शुभ
5. षटाष्टक – (छः – आठ) – अशुभ व शुभ दोनों ही हो सकते हैं l
6. सम – सप्तक – हमेशा शुभ
- इस सब में द्वि – द्वादश और षटाष्टकयोग के भकुट पर विशेष विचार किया जाता है l अगर षटाष्टक और द्वि – द्वादश शत्रु राशियों के या विरोधी दल के हों तो उसके लिए कुण्डली मिलान को अनुमति नहीं दी जाती है l परन्तु यदि द्वि – द्वादश योग और षटाष्टक योग भी अति मित्र राशियों के हों तो भकुट दोष का परिहार हो जाता है l
उदाहरण:
द्वि – द्वादश योग –
- Case-1
- Case-2
- Case-3
- Case-4
उदाहरण:
षटाष्टक योग:
- Case-1
- Case-2
नाड़ी :
- कुण्डली मिलान में नाड़ी को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, इसलिए इसे सबसे ज्यादा अंक दिए जाते हैं l नाड़ी का सम्बन्ध संतान – सुख से है l वर और कन्या की एक ही नाड़ी होना विवाह के लिए अशुभ माना जाता है l भिन्न नाड़ी के आठ गुण तथा नाड़ी समान होने पर शून्य गुण हो जाते हैं l नाड़ी का निर्धारण नक्षत्र से किया जाता है l
नाड़ी दोष परिहार :
- वर तथा कन्या की सम नाड़ी होने पर यदि नक्षत्र भिन्न हों या उन नक्षत्रों के चरण भिन्न हों तो कुण्डली मिलान में नाड़ी – दोष का परिहार माना जाता है l
- यदि वर – कन्या के कुण्डली मिलान में 28 गुण मिल जाएँ तो भी नाड़ी – दोष का परिहार होता हैl
गण मिलान :
- गण – मिलान का निर्णय चंद्र नक्षत्र से किया जाता है l गण तीन प्रकार के होते हैं – देव गण, राक्षष गण और मनुष्य गण l इनकी महत्ता इसलिए कम है क्यूंकि ग्रहमैत्री के हो जाने से गण की महत्ता में बहुत कमी आ जाती है l यदि कुण्डली के अष्टकूट मिलान में ग्रह मिलते हों परन्तु गण न मिलते हों, तब भी कुण्डली मिलान की आज्ञा होती है l
Live Chat Support:
Timings: 11:00 AM to 5:00 PM
Download “Kiara Astrology App” From Google Play Store and Give your Ratings & Feedback.
Very good Information 🙂
very good information…. really knowledgeable content. ek phd astrologer ne mjhe bahut bevkuf banaya ki tumhara divorce ho jayega milaan sahi nhi h Pooja karao tab theek ho ga…. lekin aapne etne aasan tareeke se samjha diya … meri sari tension dur ho gyi and us se bebkuf astrologer se bach gyi …. thank you somvir sir for your nice support. God bless you.